अमेरिका 1929 में महामंदी आई थी
दुनिया की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका के लिए यह बहुत बड़ा दुःस्वप्न है कि उसके सामने 7 दशकों बाद भीषण मंदी का संकट मंडरा रहा है जो अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगी, उद्योगों की कमर तोड़ कर लाखों लोगों को बेरोजगार कदेगी. नेशनल एसोसिएशन फाॅर बिजनेस इकोनॉमिक्स (एनएबीई) के सर्वेक्षण में कहा गया कि अमेरिका में व्दितीय विश्व युद्ध के बाद 1964 में जैसी मंदी आई थी, वैसी इस वर्ष भी आ सकती है. सेकंड वर्ल्ड वार के चलते अमेरिका की जीडीपी में 11.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी. अभी अनुमान है कि कोरोना महामारी के कारण 2020 में अमेरिका की जीडीपी 5.9 फीसदी घट जाएगी. अप्रैल जून की तिमाही में ये गिरावट रिकॉर्ड 33.5 प्रतिशत होगी. इस समय भी बड़ी तादाद में बेरोजगार हो चुके लोगों को अमेरिका की सरकार गुजारे के लिए अलाउंस दे रही है. राष्ट्रपती हैरी ट्रूमेन के कार्यकाल में आई 1946 मंदी की वजह यदि युध्द में संसाधनों का खर्च होना था तो अभी इसका कारण कोरोना आपदा है जिसने सामान्य जीवन तथा लोगों की कमाई ठप कर दी.
इसके पूर्व अमेरिका ने 1929 में ग्रेट डिप्रेशन या महामंदी को झेला था. यह महामंदी 4 सितंबर 1929 को शुरू हुई थी और 29 अक्टूबर 1929 को अमेरिका का शेयर बाजार पूरी तरह ध्वस्त हो गया था. उद्योगधंधे चौपट हो गए थे. नगदी का भारी संकट था. यह मंदी 43 महीने या करीब साढ़े तीन वर्ष तक चली. इस दौरान अमेरिका में बेरोजगारी की दर 25 प्रतिशत हो गई थी और 90 लाख लोग पूरी तरह बेरोजगार हो गए थे. अंतरराष्ट्रीय व्यापार घटकर आधा रह गया था. तब डाक्टरों, इंजीनियरों और जजों का वेतन आधा कर दिया गया था. लोगों ने खर्च कम करने के लिए अपने घरों के किचन गार्डन में सब्जियां और अनाज उगाना शुरू कर दिया था. इस मंदी से निपटने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन बी रूजवेल्ट ने मार्शल प्लान लागू किया था. मंदी को एक अवसर मानकर कोनराॅड हिल्टन ने बहुत सस्ते दाम पर खाली पड़े हुए होटल खरीदे और विश्व भर में अपनी हिल्टन होटल की चेन खड़ी कर ली. हिल्टन को भरोसा था कि मंदी कभी न कभी खत्म होगी और पर्यटक आने लगेंगे. उनका आत्मविश्वास रंग लाया और 1933 तक मंदी खत्म हो गई थी.
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