Monday, June 29, 2020

बैड कोलेस्ट्रॉल को थामे आम की गुठली

गलत खानपान से बिगड़े कोलेस्ट्रॉल                                            शरीर में दो तरह के कोलेस्ट्रॉल होते हैं. पहला गुड कोलेस्ट्रॉल और दुसरा बैड कोलेस्ट्रॉल. अनियमित जीवनशैली और गलत खानपान के कारण शरीर में गुड कोलेस्ट्रॉल बनना कम हो जाता है जबकि बैड कोलेस्ट्रॉल ज्यादा बनने लगता है.                  डायबिटीज हार्ट प्रॉब्लम का खतरा                                            बैड कोलेस्ट्रॉल ज्यादा बनने के कारण डायबिटीज और दिल की बीमारियां होने का खतरा होता है. आम में विटामिन सी और फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद करता है.
                                           विभिन्न रुप में प्रयोग                                                                   आम को कुछ लोग अमझोरा यानी आम की सब्जी बनाकर भी खाते हैं. आम के खट्टे और मीठे अचार भी बनते हैं. आम की चटनी, आम पना, अमौट, आम पापड़, कैंडी और खटाई के रुप में भी लोग इसे खुब पसंद करते हैं. इससे अमचूर पाउडर भी बनाया जाता है. इस तरह आम कई फूड आइटम के रूप में खाया जाता है. ये सब किसी न किसी रूप में सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं।        ओवर ईटिंग से बचाव                                                        आम खाने से पेट भरा हुआ लगता है और जल्दी भूख भी नहीं लगती. इस तरह लोग ओवर ईटिंग यानी ज्यादा खाना खाने से बचते हैं. 
                                     एक्सट्रा फैट को करे कम                                                      गुठलियों का बात करें तो इसमें पाए जाने वाले रेशे शरीर में मौजूद एक्सट्रा फैट को कम करने में बेहद मददगार होते हैं. अमचूर पावडर में एंटी - आॅक्सीडेंट और एंटी इंफ्लामेट्री गुण पाए जाते हैं, जिसके सेवन से लोगों का मेटाबॉलिज्म बेहतर होता है. इससें वजन कम करने में मदद मिलती है. अमचूर पाचन तंत्र को भी मजबूत करता है. 

Sunday, June 28, 2020

दुनिया का सबसे खतरनाक जहर

दुनिया में सबसे खतरनाक जहर कौन सा है , इसके सवाल के जवाब में शायद आप कहें साइनाइड! लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पोलोनियम-210 साइनाइड से भी खतरनाक जहर है और इसका सिर्फ एक ग्राम हजारों लोगों को मौत की नींद सुला सकता है.                                                                                                   पोलोनियम-210 एक रेडियोएक्टिव तत्व है और यह पोलोनियम का आइसोटोप है. पोलोनियम-210 से निकलने वाला रेडिएशन इंसानी शरीर के अंदरुनी अंगों, डीएनए और इंसान के इम्यून सिस्टम को भी तेजी से तबाह कर सकता है. मैरी क्युरी ने 1898 में पोलोनियम-210 की खोज की थी. हालांकि, शुरुआत में पोलोनियम का नाम रेडियम-एफ रखा गया, बाद में इसका नाम पोलोनियम रखा गया. पोलोनियम-210 कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि अगर नमक के छोटे कण जितना भी इंसान में चला जाए तो उस व्यक्ति की मौत पक्की है. अगर किसी व्यक्ति के शरीर में पोलोनियम पहुंच जाए तो इसकी मौजूदगी का पता लगाना काफी मुश्किल होता है. अगर किसी व्यक्ति के शरीर में पोलोनियम पहुंच जाए तो व्यक्ति के बाल गिरने लगते हैं, लेकिन इसके अलावा कोई खास लक्षण सामने नहीं आते हैं. पोलोनियम-210 मशीनों के पकड में बहुत आसानी से नहीं आता, इसलिए इसकी तस्करी बहुत आसान मानी जाती है. पोलोनियम-210 से सिर्फ अल्फा कण निकलते हैं जो कागज की एक शीट को भी पार नहीं कर पाते. कांग्रेस नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में इसी पोलोनियम-210 के इस्तेमाल की बात कही जाती हैं. 

Tuesday, June 23, 2020

पानी पे तैरता शहर

फ्रेन्च पोलीनेसिया ने एक ज्ञापन साइन कर लिया है जो कि अध्ययन कर रहा कैलिफोर्निया युनिवर्सिटी के साथ जिसका लक्ष्य है एक तैरता शहर बनाने का. इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर रैडोल्फ हैनकन जो यह बताते हैं कि यह शहर बसाने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि फ्रेंच पोलीनेसिया के कुछ इलाकों में पानी में कम लेवल होने की वजह से डुब जाने का डर है. पर्यावरण में काफी बदलाव आए हैं और इन्हीं बदलावों के कारण फ्रेन्च पोलीनेसिया के कुछ क्षेत्र डूब जाएंगे. पानी का स्तर बढ़ने की वजह से. माना जा रहा है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो फ्रेन्च पोलीनेसिया का 2/3 हिस्सा डूब जाएगा. रैडोल्फ का कहना है कि वह शहर जल्द तैयार करवाना चाहते क्योंकि उन्हें लगता है कि बाढ़ कभी भी आ सकती है. वो कहते हैं कि यह प्रोजेक्ट अपने आप में एक आधुनिक शहर होगा मगर इसे बनाने में काफी खर्चा भी आएगा. वह कहते है कि उन्हें आश्रयुक्त पानी कि जरुरत है न कि वो शहर समुद्र के बीच बसाना चाहते हैं.

उंगली से छुते ही फोन चार्ज

कुछ वर्षों  में ऐसे फोन आने लगेंगे जो आपके छुने से ही चार्ज हो जाया करेंगे. स्मार्टफोन में आने वाले नए चार्जर पहले से ज्यादा टिकाऊ होगें. यह चार्जर टिकाऊ होने के साथ महंगे भी बहुत आएंगे. इन चार्जर को इस्तेमाल करने की तकनीक मरीजों के दिल में लगे पैसमेकर के काम करने के तरीके से प्रेरित है. ऊर्जा को लेने के लिए चलना, दौड़ना और रोज की कसरत बहुत है जो उपकरणों को चार्ज करने में उपयोगी हो सकती है. मोशन से ऊर्जा बटोरने वाले उपकरण अब इंसान की मोशन से ऊर्जा लेगें. इंसान के किए जाने वाले मोशन जैसे दौड़ना, नाचना या फिर चलना भी बहुत होगा मोबाइल को चार्ज करने के लिए. अभी फिलहाल इस तकनीक पर काम चल रहा है और कुछ ही वर्षों में यह बाजार में आम जनता के लिए उपलब्ध होगी.

Monday, June 22, 2020

काला गेहूं, गुलाबी रोटियां

उत्तर प्रदेश  के बदायूं जिले के तहसील बिसौली के गांव मोहम्मदपूर में किसान नरेश कुमार शर्मा ने पहली बार काले गेहूं की खेती की. इस रबी सीजन में किसान ने आधा बीघा खेत से 2 क्विंटल काले गेहूं फसल प्राप्त की. किसान ने इस गेहूं को बिना रासायनिक दवाओं के तैयार किया, केवल वर्मी कंपोस्ट और डब्ल्यूडीसी खाद का उपयोग किया. आइए जानते हैं इससे जुड़ी जानकारियां                  जब किसान ने काले गेहूं को पिसवाया तो आटे का रंग काला और सफेद हो गया इस आटे की रोटियां गुलाबी रंग की बनकर तैयार हुई हैं.   
खरगौन से लिया था बीज                                                                     नरेश ने मध्य प्रदेश के खरगौन से काला गेहूं का बीज लाकर फसल तैयार की. प्रति बीघा बुवाई में इस गेहूं के 8 से 10 किलो बीज लगते हैं. पैदावार 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिल सकती हैं.                                                                        बचाएगा कई बीमारियों से                                                                        नाबी के वैज्ञानिकों के मुताबिक काला गेहूं साधारण गेहूं से ज्यादा पौष्टिक है. यह गेहूं लोगों को कई गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, शुगर, मोटापा, कोलेस्ट्रॉल, दिल की बिमारी और तनाव से बचाएगा.     इस गेहूं की रिसर्च नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, नाबी (मोहाली, पंजाब) ने की है. कृषि वैज्ञानिक डॉ. मोनिका गर्ग ने साल 2010 से रिसर्च करना शुरू किया था. इसके बाद काला गेहूं किया गया. इसलिए इस गेहूं का नाम नाबी एमजी रखा है.
                           किसानों के लिए फायदेमंद                                                1) बेशक अभी बाजार में काला गेहूं नहीं बेचा जा रहा है लेकिन माना जा रहा है कि काला गेहूं कम से कम 3500 रुपये प्रति क्विंटल से बिक जाएगा.                                                                  2) अभी यह गेहूं बाजार में इसलिए नहीं बेचा जा रहा है क्योंकि पहले इसे रिसर्च सेंटर भेजा जाएगा. हालांकि किसान एक-दूसरे से गेहूं ले सकते हैं.                                                                  3) बताया जा रहा है कि रिसर्च सेंटर जल्द ही बाजार में काले गेहूं की कंपनियां उतारने जा रहा है. इसके बाद यह बाजार में बिकना शुरू हो जाएगा. 

Saturday, June 20, 2020

'हरा सोना' देखा है क्या

रेगिस्तान में उगने वाला जादुई पौधा                                             बायोफ्युल बनाने वाला 'हरा सोना ' मेक्सिको के रेगिस्तान में उगता है. बंजर जमीन को खूबसूरत बनाता है, इसे सलाद में खाया जा सकता है. इससें चिप्स बनाते है और लजीज शेक बनाकर भी पिया जाता है. ये जादुई पौधा मेक्सिको के मेसोअमेरिकन क्षेत्र में पाया जाता है. इसका नाम है "नोपल "               
                         नाशपाती जैसा फल                                                                  नोपल,  इंसान की बहुत सी चुनौतियों का जवाब हो सकता है. ये हमें जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी मदद कर सकता है. अगर इसे मेक्सिको का मैजिकल प्लांट कहें, तो गलत नहीं होगा. नोपल  एक कांटेदार नाशपाती जैसा फल है, जो मेक्सिको के रेगिस्तानों में नागफनी के साथ उगता है. मेक्सिको में केमेम्र्बो नाम का आदिवासी समुदाय इसकी खेती करता है. 
                               कचरे से बनता जैव-इंधन                                                             इसके अलावा नोपल की खेती, मकई की खेती की तुलना में ज्यादा बड़े पैमाने पर होती है. एक अंदाजे के मुताबिक कम उपजाऊ जमीन पर भी प्रति हेक्टेयर 300 से 400 टन नोपल उगाया जा सकता है जबकि उपजाऊ भूमि में 800 से 1000 टन तक उपज हो जाती है. इसके अलावा नोपल  की खेती में पानी की खपत बहुत कम और फायदा दोहरा है.  नोपल को फल के तौर पर बेचा जाता है और उसके कचरे से जैव-इंधन तैयार कर लिया जाता है. 
व्यापक स्तर पर नोपल  की खेती करने के तीन कारण हैं. पहला तो सामाजिक है. नोपल  की खेती से लोगों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मिल जाता है और पलायन नहीं होता. दुसरा, आर्थिक दृष्टिकोण से भी ये फायदे का सौदा है. मेक्सिको में जिस पैमाने पर नोपल  से तेल निकाला जा रहा है उससे लगता है कि वहां बहुत जल्द जैव-इंधन यानी रिन्यूएबल एनर्जी का विकल्प बनकर सामने आएगा.  

Friday, June 19, 2020

100 भाषाओं को बोलनेवाला रोबोट 🤖🤖🤖🤖

ईरान  के तेहरान विश्वविद्यालय ने एक ऐसा रोबोट बनाया है, जो 100 भाषाओं को बोल सकता है. इतनी ही भाषाओं को समझकर यह अनुवाद कर सकता है. यह चेहरे को पहचान सकता है और फुटबॉल को किक लगा सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, विश्वविद्यालय के फैकल्टी आॅफ इंजीनियरिंग ने 4 साल में इस रोबोट को तैयार किया है.
                                               इसका नाम "सुरेना " रखा गया है. यह चीजों को उठा सकता है. 100 अलग अलग वस्तुओं को पहचान सकता है. इसे चेहरों को पहचानने में भी 'महारत' हासिल है. यह हाथ मिलाकर लोगों का अभिवादन भी कर सकता है. 
                                रोबोट  सुरेना 170 सेंटीमीटर लंबा और 70 किलोग्राम वजनी है. एक घंटे में 700 मीटर चलने में सक्षम है. उबड़ खाबड़ जमीन पर यह आगे पीछे और दाएं - बाएं मुड़कर संतुलन बनाए रख सकता है. इसके अलावा भी इसमें मनुष्यों के समान कई गुण हैं. 

कब और कैसे हुई इमोजी की शुरुआत ☺️🤑🙏🙆🤡👽💗💘👍✌️

आज की तारीख में यूजर्स व्हॉट्सऐप से लेकर इंस्टाग्राम तक में चैटिंग के दौरान स्माइली इमोजी का उपयोग करते हैं. दिलचस्प बात यह है कि अब यूजर्स हंसी और प्यार के लिए सिर्फ इमोजी भेजकर ही अपने जज्बात बयां कर देते हैं. लेकिन क्या जानते हैं कि इमोजी की शुरुआत कब और कैसे हुई.
                                साल 1963 की बात है, अमेरिका की एक बीमा कंपनी ने अपने नाराज कर्मचारियों को मनाने और उनमें जोश भरने के लिए पब्लिक रिलेशन कंपनी चलाने वाले हार्वी रास बाॅल से संपर्क किया. तब कंपनी ने हार्वी को बताया कि हमने दूसरी कंपनी के साथ विलय किया है, जिसकी वजह से हमारे कर्मचारी नाराज हैं. इसके बाद हार्वी ने पीले रंग का एक हंसता हुआ चेहरा बनाया, जिसको देखने के बाद सभी कर्मचारी बहुत खुश हो गए थे. तब से लेकर आज तक इसे स्माइली के नाम से जाना जाता है. वही, हार्वी ने इस हंसते हुए चेहरे को बनाने के लिए 45 डाॅलर (करीब 3,100 रुपये) लिए थे. 
                           स्माइली फेस स्टाम्प                                                                 स्माइल इमोजी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हुई थी. यही वजह थी कि साल 1971 में करीब 5 करोड़ स्माइली फेस बटन बेचे गए थे. इतना ही नहीं 1999 में यूएस पोस्टल विभाग ने भी स्माइली फेस की स्टाम्प जारी की थी. 19 सितंबर 1982 में पहली बार अमेरिका के कानर्गी मिलाॅन यूनिवर्सिटी में प्रो. स्काॅट ई. फालमैन ने कंप्यूटर में इस स्माइली का उपयोग किया था. इसके बाद से ही स्माइली का चलन कंप्यूटर में तेजी से बढ़ा था. 

तरबूज की वजह से गई थी हजारों सैनिकों की जान

भारत  में कई युध्द ऐसे भी हूए हैं जो जिनका कारण बेहद अजीब था. इन युध्दों मे से एक युध्द ऐसा था जिसमें एक तरबूज की वजह से हजारों सैनिकों की जान चली गई थी. यह करीब 375 साल पहले हुई घटना है जिसे "मतीरे की राड़ " के नाम से जाना जाता है. राजस्थान के कुछ हिस्सों में तरबूज को मतीरा कहा जाता है और राड़ का मतलब झगड़ा होता है.
                                "मतीरे की राड़ " नामक लड़ाई 1644 ईस्वी में लड़ी गई थी. उस समय बीकानेर रियासत का सीलवा गांव और नागौर रियासत का जाखणियां गांव एक दूसरे से सटे हुए थे. हुआ यह कि तरबूज का एक पौधा बीकानेर रियासत की सीमा में उगा. लेकिन उसका एक फल नागौर रियासत की सीमा में चला गया. अब बीकानेर रियासत के लोगों का मानना था कि तरबूज का पौधा उनकी सीमा में है तो फल भी उनका ही हुआ, लेकिन नागौर रियासत के लोगों का कहना था कि जब फल उनकी सीमा में आ गया है तो वो उनका हुआ. 
                                   इसी बात को लेकर दोनों रियासतों में झगड़ा हो गया जो खूनी लड़ाई में तब्दील हो गया. इस लड़ाई में बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने और नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी सुखमल ने किया. दोनों राजाओं  को इसके बारे में शुरू में कुछ भी पता नहीं था क्योंकि उस समय बीकानेर के शासक राजा करणसिंह एक अभियान पर गए हुए थे जबकि नागौर के शासक राव अमरसिंह मुगल साम्राज्य की सेवा में थे. दोनों राजाओं ने मुगल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार कर ली थी. 

Thursday, June 18, 2020

1 प्लस 8 प्रो स्मार्टफोन

Oneplus 8 pro  जल्द ही लांच होने जा रहा है. फोन में 120Hz रिफ्रेश रेट,HDR10+ सपोर्ट और गोरिल्ला ग्लास प्रोटेक्शन के साथ 6.78 इंच का QHD+Fluid Amoled डिस्प्ले दिया गया है. 12 जीबी तक के रैम और 256 जीबी तक के स्टोरेज आॅप्शन में आने वाले इस फोन में आपको स्नैपड्रैगन 865 प्रोसेसर मिलेगा.
फोटोग्राफी के लिए फोन में क्वाॅड रियर कैमरा सेटअप दिया गया है. इसमें 48 मेगापिक्सल के प्राइमरी सेंसर के साथ एक 48 मेगापिक्सल का वाइड ऐंगल कैमरा, एक 8 मेगापिक्सल टेलिफोटो लेंस और एक 5 मेगापिक्सल का कलर फिल्टर लेंस दिया गया है. सेल्फी के लिए फोन में 16 मेगापिक्सल का कैमरा लगा है. 
                                               फोन ऐंड्राॅयड 10 ओएस पर बेस्ड OxygenOS  पर चलता है. फोन को पावर देने के लिए इसमें 4,510mAh की बैटरी दी गई है, जो 30 T  वार्प चार्जिंग सपोर्ट के साथ आती है. आॅनिक्स ब्लैक, ग्लेशियल ग्रीन और अल्ट्रामरीन ब्लू कलर आॅप्शन में आने वाले इस फोन के 8 जीबी रैम + 128 जीबी, 12 जीबी रैम और 256 जीबी स्टोरेज वाले वेरिएंट अवेलेबल होगें. 

Wednesday, June 17, 2020

विवो वाय 50 स्मार्टफोन

विवो  ने हाल ही में अपने लेटेस्ट स्मार्टफोन वाय 50 को भारत में लॉन्च किया है. यूजर्स को इस स्मार्टफोन में 8 जीबी रैम, 128 जीबी स्टोरेज, एचडी डिस्प्ले और दमदार प्रोसेसर का सपोर्ट मिला है.                       
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                                            वाय 50 स्मार्टफोन                                                                                                                                                      स्पेसिफिकेशन  की बात करें तो इस स्मार्टफोन में 6.3 इंच का फुल एचडी प्लस डिस्प्ले दिया गया है, जो पंचहोल डिजाइन के साथ आता है. इस फोन में क्वालकाॅम स्नैपड्रैगन 665 प्रोसेसर का भी सपोर्ट दिया गया है. यह फोन एंड्रॉयड 10 आपरेटिंग सिस्टम पर काम करता है. फोन में क्वाड कैमरा सेटअप मिला है, जिसमें 13 मेगापिक्सल का प्राइमरी सेंसर, 8 मेगापिक्सल का अल्ट्रा वाइड एंगल लेंस, 2 मेगापिक्सल का मैक्रो लेंस और 2 मेगापिक्सल का डेप्थ सेंसर मौजूद हैं. फोन में फ्रंट कॅमेरा की जानकारी नहीं मिल सकी. शानदार पावर बैकअप के लिए 5000mAh की बैटरी दी गई है. इसके अलावा यूजर्स को इस स्मार्टफोन में वाई-फाई, ब्लूटूथ, जीपीएस, हेडफोन जैक और यूएसबी पोर्ट जैसे फीचर्स मिले हैं. 

मुस्लिम देश में है भगवान विष्णु की सबसे ऊंची मूर्ति

                                      हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को धरती का पालनहार माना जाता है. यू तो लगभग भारत के हर कोने में उनके मंदिर और मूर्तियां हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया की सबसे ऊंची भगवान विष्णु की मूर्ति भारत में नहीं है. यह एक मुस्लिम देश में है. इस देश का नाम है इंडोनेशिया यह मूर्ति इतनी विशाल और इतनी ऊंचाई पर है कि आप देखकर ही हैरान हो जाएंगे. इसके अलावा एक और खास बात यह है कि इस मूर्ति को बनवाने में अरबों रुपये खर्च हुए थे.                                                                                            800 करोड़ की लागत                                                    122 फुट ऊंची और 64 फुट चौड़ी                                                 भारत में सम्मानित हुआ                                              भगवान विष्णु की यह मूर्ति 122 फुट ऊंची और 64 फुट चौड़ी है. इसका निर्माण तांबे और पीतल से किया गया है. इसे बनाने में 2-4 साल नहीं बल्कि करीब 26 साल का समय लगा है. साल 2018 में यह मूर्ति पूरी तरह बनकर तैयार हूई थी. अब इसे देखने और भगवान के दर्शन के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं. 
साल 1979 में इंडोनेशिया में रहने वाले मूर्तिकार बप्पा न्यूमन नुआर्ता ने एक विशालकाय मूर्ति बनाने का सपना देखा था. मूर्ति बनाने का काम साल 1994 में शुरु हुआ. इसे बनाने में इंडोनेशिया की कई सरकारों ने मदद की. हालांकि कई बार बजट की कमी के चलते काम रुका भी. बाली व्दिप के उंगासन में स्थित इस विशालकाय मूर्ति का निर्माण करने वाले मूर्तिकार बप्पा न्यूमन नुआर्ता को भारत में सम्मानित भी किया गया था. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया था. आज इस मंदिर की ख्याति दुनियाभर में फैल चुकी थी. बड़ी संख्या में यहां हिंदू श्रध्दालु भगवान विष्णु की दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति देखने के लिए पहुंचते हैं.

Monday, June 15, 2020

सेहत और त्वचा के लिए गुणकारी है "जीरा"

1) शहद और जीरा  से बनाया हुआ फेसपैक न केवल आपकी त्वचा को नई दमक देता है. बल्कि उसे मुलायम भी बनाता है. शहद त्वचा की सूजन को दूर करता है और जीरा उसे नम बनाता है. इस पैक को धोने के बाद चेहरे पर थोड़ा जोजोबा आॅइल लगाए. यह मास्क बनाने के लिए 1/4 टेबलस्पून हल्दी पाउडर, आधा टेबलस्पून जीरा पाउडर और 1 टेबलस्पून शहद अच्छे से मिलाएं. यह मास्क लगाने के बाद 10 मिनट तक सुखने दे. उसके बाद गर्म पानी से धो लें. आप इस फेसपैक का इस्तेमाल हफ्ते में दो या तीन बार कर सकते हैं.                                                                           2) गर्भवती  महिलाओं के लिए जीरा रामबाण जैसा है. यह कब्ज कम करता है, जिससे गर्भवती महिला का हाजमा भी सुधरता है. जी मचलाने जैसे प्रेग्नेंसी के लक्षणों भी कम करता है. एक ग्लास गर्म दूध लें. उसमें आधा टेबलस्पून जीरा पाउडर और एक टेबलस्पून शहद डालें. ठीक से मिला लें. यह नुस्खा नियमित रुप से आजमाएं.
                                  3) जीरा पाचन तंत्र को बेहतर बनाने के लिए जाना जाता है. अपने थायमाॅल कम्पाउंड और दूसरे महत्वपूर्ण आॅयल के चलते जीरा सैलिवरी ग्लैंड्स को प्रोत्साहित करता है, जिससे पाचन सुधरता है. यदी आपको भी अपच की शिकायत हो तो दिन में तीन बार जीरा चाय पिएं. 1 कप पानी ले और उसमें 1 टीस्पुन जीरा डालें. पानी को उबालें. उसके बाद छानकर पिएं. ऐसा दिन में तीन बार करें.                                                                                                                                                                    4) अपने ऐंटी-बैक्टीरियल  और ऐंटी - इन्फ्लेमेटरी गुणों के चलते जीरा सर्दी -खासी के लिए इस्तेमाल होनेवाले घरेलू नुस्खों में अपनी खास जगह रखता है. जीरा के घटक मसल्स की सूजन को कम करते हैं और इन्फक्शन्स से लडने के आपकी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देते हैं. एक ग्लास  पानी में एक टेबलस्पून जीरा डालें. उसे उबाले फिर उसमें थोड़ा सा कटा हुआ अदरक डालें. ठीक से उबाले. इसे छाने और दिन में दो से तीन बार इसका सेवन करें. 

हाय-हेलो करें, हैंडशेक नहीं

सोशल डिस्टेसिंग, हैंड सैनिटाइजेशन और मास्क हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है. अब जब दफ्तर खुलने लगे हैं तो वहां भी इन तीनों का पूरा ध्यान रखना जरूरी होगा इसके लिए सचेत रहते हुए कुछ नियमों का पालन करें.   
 1) सबसे हाय-हेलो करें लेकिन हैंडशेक करके नहीं, बल्कि नमस्ते करते हुए. अपना सिस्टम लैपटॉप आदि आॅन करने के बाद  हैंड सैनिटाइजर से हाथ साफ कर लें. अपने पास हमेशा टिश्यू पेपर्स, वाइप्स और सैनिटाइजर रखे. मास्क को लगाए रखे. अपना खाना, पानी, चाय और स्नैक्स साथ में रखना अच्छा होगा.     
                                  2) अगर आपके ओआफिस में कैंटीन खुल रही हैं तो वहां भी 6 फिट की दूरी मेंटेन करें. अगर सुविधा हो तो अपनी ही सीट पर बैठकर खाने को प्राथमिकता दें. अलग अलग बैठकर खाएं. ग्रुप में न खाएं. साथ ही अपना लंच किसी से शेयर न करें. अपनी ही डेस्क पर बैठे. दूसरे की डेस्क पर बिलकुल न जाएं.     
 3) हमें कोरोना को आम जिंदगी का हिस्सा मानकर सावधानी बरतनी होगी और आगे बढ़ना होगा. वर्कस्टेशन पर भी मास्क पहनकर रहे. टाॅयलेट के इस्तेमाल में सावधानी बरतें. जाने से पहले फ्लश चला ले और सीट पर बैठने के लिए टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करें. टाॅयलेट सीट से उठने के बाद दोबारा फ्लश चलाएं और इसके बाद अपने हाथों को अच्छी तरह 20 सेकंड्स तक धोकर साफ टाॅवेल से सुखा लें.
                                  4) अपने रुमाल या टॉवेल को इधर-उधर न टांगे, उन्हें अपने ही पास रखे. काम के दौरान चाहे चाहे किसी चीज को न छू रहे हों, तो भी हर दो घंटे बाद हाथ साफ करना न भूलें. आॅफिस में सीढ़ियों का ही इस्तेमाल करें, वहां भी पर्याप्त दूरी मेंटेन रखें. 

Saturday, June 13, 2020

प्राकृतिक तरीके से घर को बनाएं खुशबूदार

खुशबू का हमारे दिल से बड़ा गहरा नाता है. इसलिए हम अपने घर को भी सुगंधित रखने का प्रयास करते हैं. इससे न सिर्फ माहौल में ताजगी का एहसास बना रहता है. बल्कि मन भी खुश व सकारात्मक रहता है. घर को कैसे महकाएं खुशबू से. आइए जानते हैं                                                                                         1) घर के किसी कार्नर में एक पाॅट या जार में ताजा पानी भरे और उसमें गुलाब की कुछ पंखुड़ियाँ डाल दें, साथ में लैवेंडर या लेमन एसेंशियल आॅयल की कुछ बूंदें मिला दें. घर एक प्राकृतिक अरोमा से सुवासित हो उठेगा. इससे मच्छरों से भी छुटकारा मिल सकता है.                 
                              2) शोध बताते हैं कि एसेंशियल आॅयल से वायरस, बैक्टीरियल और फंगल इन्फेक्शन्स का खतरा कम होता है. ये दर्द में आराम पहुंचाते हैं. आम भारतीय घरों में कपूर और गुग्गल का प्रयोग होता है, इससे मन शांत होता है, अनिद्रा जैसी समस्या दूर होती है और प्रसन्नता आती है.                                                 3) एक्सपर्ट्स मानते हैं कि लैवेंडर जैसे कुछ खास एसेंशियल आॅयल्स न सिर्फ नर्वस सिस्टम पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, बल्कि इससे सेहत को भी फायदा होता है. इससें ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट को भी संतुलित करने में मदद मिलती है. लेमन,आॅरेंज, बेसिल, रोजमेरी और पिपरमिंट की सुगंध मन को ऊर्जा प्रदान करती है.               
   4) सुगंधित कैंडल्स भी आती है. वैसे घर में शाम को धुपबत्ती जला लेना भी काफी अच्छा अनुभव करता है. वास्तु के अनुसार घर का महकना परिवार के लिए शांति और खुशहाली लाता है. इसके लिए आप शाम को कपूर भी जला सकती हैं.

Friday, June 12, 2020

अमेरिका पर लटक रही मंदी की तलवार

अमेरिका 1929 में महामंदी आई थी 
                             दुनिया की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका के लिए यह बहुत बड़ा दुःस्वप्न है कि उसके सामने 7 दशकों बाद भीषण मंदी का संकट मंडरा रहा है जो अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगी, उद्योगों की कमर तोड़ कर लाखों लोगों को बेरोजगार कदेगी. नेशनल एसोसिएशन फाॅर बिजनेस इकोनॉमिक्स (एनएबीई) के सर्वेक्षण में कहा गया कि अमेरिका में व्दितीय विश्व युद्ध के बाद 1964 में जैसी मंदी आई थी, वैसी इस वर्ष भी आ सकती है. सेकंड वर्ल्ड वार के चलते अमेरिका की जीडीपी में 11.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी. अभी अनुमान है कि कोरोना महामारी के कारण 2020 में अमेरिका की जीडीपी 5.9 फीसदी घट जाएगी. अप्रैल जून की तिमाही में ये गिरावट रिकॉर्ड 33.5 प्रतिशत होगी. इस समय भी बड़ी तादाद में बेरोजगार हो चुके लोगों को अमेरिका की सरकार गुजारे के लिए अलाउंस दे रही है. राष्ट्रपती हैरी ट्रूमेन के कार्यकाल में आई 1946 मंदी की वजह यदि युध्द में संसाधनों का खर्च होना था तो अभी इसका कारण कोरोना आपदा है जिसने सामान्य जीवन तथा लोगों की कमाई ठप कर दी. 
                                          इसके पूर्व अमेरिका ने 1929 में ग्रेट डिप्रेशन या महामंदी को झेला था. यह महामंदी 4 सितंबर 1929 को शुरू हुई थी और 29 अक्टूबर 1929 को अमेरिका का शेयर बाजार पूरी तरह ध्वस्त हो गया था. उद्योगधंधे चौपट हो गए थे. नगदी का भारी संकट था. यह मंदी 43 महीने या करीब साढ़े तीन वर्ष तक चली. इस दौरान अमेरिका में बेरोजगारी की दर 25 प्रतिशत हो गई थी और 90 लाख लोग पूरी तरह बेरोजगार हो गए थे. अंतरराष्ट्रीय व्यापार घटकर आधा रह गया था. तब डाक्टरों, इंजीनियरों और जजों का वेतन आधा कर दिया गया था. लोगों ने खर्च कम करने के लिए अपने घरों के किचन गार्डन में सब्जियां और अनाज उगाना शुरू कर दिया था. इस मंदी से निपटने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन बी रूजवेल्ट ने मार्शल प्लान लागू किया था. मंदी को एक अवसर मानकर कोनराॅड हिल्टन ने बहुत सस्ते दाम पर खाली पड़े हुए होटल खरीदे और विश्व भर में अपनी हिल्टन होटल की चेन खड़ी कर ली. हिल्टन को भरोसा था कि मंदी कभी न कभी खत्म होगी और पर्यटक आने लगेंगे. उनका आत्मविश्वास रंग लाया और 1933 तक मंदी खत्म हो गई थी. 

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